प्रकृति में सर्वत्र हम प्रेम का विकास देखते हैं। मानव-समाज में जो कुछ सुन्दर और महान् है, वह समस्त प्रेम-प्रसूत है; फिर जो कुछ खराब, यही नहीं, बल्कि पैशाचिक है, वह भी उसी प्रेमभाव का विकृत रूप है। …
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