Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.18।। व्याख्या -- सत्कारमानपूजार्थं तपः क्रियते -- राजस मनुष्य सत्कार? मान और पूजाके लिये ही तप किया करते हैं जैसे -- हम जहाँकहीं …
Bhagavad Gita 17.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.17।। व्याख्या -- श्रद्धया परया तप्तम् -- शरीर? वाणी और मनके द्वारा जो तप किया जाता है? वह तप ही मनुष्योंका सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य …
BG 4.23 गतसङ्गस्य मुक्तस्य
गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥23॥ गतसङ्गस्य, मुक्तस्य, ज्ञानावस्थितचेतस:,यज्ञाय, आचरत:, कर्म, समग्रम्, प्रविलीयते॥ २३॥ गतसङ्गस्य = जिसकी आसक्ति …
Bhagavad Gita 17.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.16।। व्याख्या -- मनःप्रसादः -- मनकी प्रसन्नताको मनःप्रसाद कहते हैं। वस्तु? व्यक्ति? देश? काल? परिस्थिति? घटना आदिके संयोगसे पैदा …
Bhagavad Gita 17.15
श्रीरामकृष्णदेव ने कहा है – “सत्य बात कलियुग की तपस्या है।” वाचिक सत्य के ऊपर वह बहुत जोर देते थे। उपनिषद के ऋषि कहते हैं – “सत्येन लभ्यः तपसा ह्येष आत्मा, सम्यग् ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम्।” …
BG 4.13 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥13॥ चातुर्वर्ण्यम्, मया, सृष्टम्, गुणकर्मविभागश:,तस्य, कर्तारम्, अपि, माम्, विद्धि, अकर्तारम्, अव्ययम्॥ …