Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.10।। व्याख्या -- काममाश्रित्य दुष्पूरम् -- वे आसुरी प्रकृतिवाले कभी भी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेते हैं। जैसे कोई मनुष्य …
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BG 3.22 न मे पार्थास्ति कर्तव्यं
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन ।नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥22॥ न, मे, पार्थ, अस्ति, कर्तव्यम्, त्रिषु, लोकेषु, किंचन,न, अनवाप्तम्, अवाप्तव्यम्, वर्ते, एव, च, कर्मणि॥ …
Bhagavad Gita 16.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.9।। व्याख्या -- एतां दृष्टिमवष्टभ्य -- न कोई कर्तव्यअकर्तव्य है? न शौचाचारसदाचार है? न ईश्वर है? न प्रारब्ध है? न पापपुण्य है? न …
BG 3.32 ये त्वेतदभ्यसूयन्तो
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥32॥ ये, तु, एतत्, अभ्यसूयन्त:, न, अनुतिष्ठन्ति, मे, मतम्,सर्वज्ञानविमूढान्, तान्, विद्धि, नष्टान्, अचेतस:॥ …
Bhagavad Gita 16.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.8।। व्याख्या -- असत्यम् -- आसुर स्वभाववाले पुरुष कहा करते हैं कि यह जगत् असत्य है अर्थात् इसमें कोई भी बात सत्य नहीं है। जितने …
Bhagavad Gita 16.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.7।। व्याख्या -- प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः -- आजकलके उच्छृङ्खल वातावरण? खानपान? शिक्षा आदिके प्रभावसे प्रायः …