Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.65।। व्याख्या -- मद्भक्तः -- साधकको सबसे पहले मैं भगवान्का हूँ इस प्रकार अपनी अहंता(मैंपन) को बदल देना चाहिये। कारण कि बिना …
Bhagavad Gita 18.64
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.64।। व्याख्या -- सर्वगुह्यतमं भूयः श्रुणु मे परमं वचः -- पहले तिरसठवें श्लोकमें भगवान्ने गुह्य (कर्मयोगकी) और गुह्यतर …
Bhagavad Gita 18.63
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.63।। व्याख्या -- इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया -- पूर्वश्लोकमें सर्वव्यापक अन्तर्यामी परमात्माकी जो शरणागति बतायी …
Bhagavad Gita 18.62
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.62।। व्याख्या -- [मनुष्यमें प्रायः यह एक कमजोरी रहती है कि जब उसके सामने संतमहापुरुष विद्यमान रहते हैं? तब उसका उनपर श्रद्धाविश्वास एवं …
Bhagavad Gita 18.61
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.61।। व्याख्या -- ईश्वरः सर्वभूतानां ৷৷. यन्त्रारूढानि मायया -- इसका तात्पर्य यह है कि जो ईश्वर सबका शासक? नियामक? सबका भरणपोषण …
Bhagavad Gita 18.60
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.60।। व्याख्या -- स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा -- पूर्वजन्ममें जैसे कर्म और गुणोंकी वृत्तियाँ रही हैं? इस जन्ममें जैसे …