Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.27।। व्याख्या -- रागी -- रागका स्वरूप रजोगुण होनेके कारण भगवान्ने राजस कर्ताके लक्षणोंमें,सबसे पहले रागी पद दिया है। रागका अर्थ …
Bhagavad Gita 18.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.26।। व्याख्या -- मुक्तसङ्गः -- जैसे सांख्ययोगीका कर्मोंके साथ राग नहीं होता? ऐसे सात्त्विक कर्ता भी रागरहित होता है।कामना? …
Bhagavad Gita 18.25
श्रीरामकृष्णदेव की वाणी में मिलता है कि सत्त्वादि गुण-भेद से साधना तीन प्रकार की है। उन्होंने कहा है – “मैंने सब प्रकार की साधनायें की हैं। साधना तीन प्रकार की है – सात्त्विक, राजसिक, तामसिक। …
Bhagavad Gita 5.27 and 5.28
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः ।प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥28॥ sparśānkṛtvā …
Bhagavad Gita 5.24 – Yo’ntaḥsukho’ntarārāma
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः ।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥ yo’ntaḥsukho’ntarārāmastathāntarjyotireva yaḥsa yogī brahmanirvāṇaṃ …
Continue Reading about Bhagavad Gita 5.24 – Yo’ntaḥsukho’ntarārāma →
Bhagavad Gita 5.12 – Yuktaḥ Karmaphalaṃ
युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥ yuktaḥ karmaphalaṃ tyaktvā śāntimāpnoti naiṣṭhikīmayuktaḥ kāmakāreṇa phale sakto …
Continue Reading about Bhagavad Gita 5.12 – Yuktaḥ Karmaphalaṃ →