Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.38।। व्याख्या -- विषयेन्द्रियसंयोगात् -- विषयों और इन्द्रियोंके संयोगसे होनेवाला जो सुख है? उसमें अभ्यास नहीं करना पड़ता। कारण कि यह प्राणी किसी भी …
Bhagavad Gita 18.37
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.37।। व्याख्या -- भरतर्षभ -- इस सम्बोधनको देनेमें भगवान्का भाव यह है कि भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन तुम राजसतामस सुखोंमें लुब्ध? …
Bhagavad Gita 18.36
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.36।। व्याख्या -- भरतर्षभ -- इस सम्बोधनको देनेमें भगवान्का भाव यह है कि भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन तुम राजसतामस सुखोंमें लुब्ध? …
Bhagavad Gita 18.35
बुद्धि और धृति तीन-तीन प्रकार की हैं, श्रीरामकृष्णदेव ने कहा है – “आनन्द भी तीन प्रकार के हैं।” एक पंडित जी से एकबार उन्होंने कहा था – “तुमसे एक बात कहता हूँ – आनन्द तीन प्रकार के हैं – विषयानन्द, …
BG 5.11 कायेन मनसा बुद्ध्या
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥ कायेन, मनसा, बुद्ध्या, केवलै:, इन्द्रियै:, अपि,योगिन:, कर्म, कुर्वन्ति, सङ्गम्, त्यक्त्वा, …
Bhagavad Gita 18.34
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.34।। व्याख्या -- यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या ৷৷. सा पार्थ राजसी -- राजसी धारणशक्तिसे मनुष्य अपनी कामनापूर्तिके लिये धर्मका …