अर्जुन उवाच ।ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥ ३-१॥ ज्यायसी, चेत्, कर्मण:, ते, मता, बुद्धि:, जनार्दन,तत्, किम्, कर्मणि, घोरे, माम्, नियोजयसि,केशव॥ …
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Bhagavad Gita 16.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.20।। व्याख्या -- आसुरीं योनिमापन्ना ৷৷. मामप्राप्यैव कौन्तेय -- पीछेके श्लोकमें भगवान्ने आसुर मनुष्योंको बारबार पशुपक्षी आदिकी …
BG 3.29 प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥29॥ प्रकृते:, गुणसम्मूढा:, सज्जन्ते, गुणकर्मसु,तान्, अकृत्स्नविद:, मन्दान्, कृत्स्नवित्, न, विचालयेत्॥ …
Bhagavad Gita 16.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.19।। व्याख्या -- तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् -- सातवें अध्यायके पंद्रहवें और नवें अध्यायके बारहवें श्लोकमें वर्णित …
Bhagavad Gita 16.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.18।। व्याख्या -- अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः -- वे आसुर मनुष्य जो कुछ काम करेंगे? उसको अहङ्कार? हठ? घमण्ड? काम और …
Bhagavad Gita 16.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.17।। व्याख्या -- आत्मसम्भाविताः -- वे धन? मान? बड़ाई? आदर आदिकी दृष्टिसे अपने मनसे ही अपनेआपको बड़ा मानते हैं? पूज्य समझते हैं …