जहाँ कहीं प्रभु का गुणगान होता हो, वही स्थान पवित्र है। तो फिर जो मनुष्य प्रभु का गुणगान करता है, वह और भी कितना पवित्र न होगा! अतएव जिनसे हमें आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त होती है, उनके समीप हमें कितनी …
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गुरु और शिष्य के लक्षण – स्वामी विवेकानन्द
तो फिर गुरु की पहचान क्या है? सूर्य को प्रकाश में लाने के लिए मशाल की आवश्यकता नहीं होती। उसे देखने के लिए हमें दिया नहीं जलाना पड़ता। जब सूर्योदय होता है तो हम अपने आप जान जाते हैं कि सूरज उग आया। …
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गुरु की आवश्यकता – स्वामी विवेकानन्द
प्रत्येक जीवात्मा का पूर्णत्व प्राप्त कर लेना बिल्कुल निश्चित है और अन्त में सभी इस पूर्णावस्था की प्राप्ति कर लेंगे। हम वर्तमान जीवन में जो कुछ है, वह हमारे पूर्व जीवन के कर्मों और विचारों का फल है, …
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भक्तियोग का ध्येय – प्रत्यक्षानुभूति | स्वामी विवेकानन्द
भक्त के लिए इन सब शुष्क विषयों की जानकारी बस इसलिए आवश्यक है कि वह अपनी इच्छाशक्ति दृढ़ बना सके; इससे अधिक उसकी और कोई उपयोगिता नहीं। कारण, वह एक ऐसे पथ पर चला है, जो शीघ्र ही उसे युक्ति के धुँधले और …
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ईश्वर का स्वरूप – स्वामी विवेकानन्द
ईश्वर कौन हैं? “जिनसे विश्व का जन्म, स्थिति और प्रलय होता है,”(१) वे ही ईश्वर हैं। वे “अनन्त, शुद्ध, नित्यमुक्त, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, परमकारुणिक और गुरुओं के भी गुरु हैं,” और सर्वोपरि, “वे …
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भक्ति के लक्षण – स्वामी विवेकानन्द
निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को भक्तियोग कहते हैं। इस खोज का आरम्भ मध्य और अन्त प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति देनेवाली होती है। भक्तिसूत्र में …