अर्जुन उवाच ।
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः ।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥ ४-४॥
अपरम्, भवत:, जन्म, परम्, जन्म, विवस्वत:,
कथम्, एतत्, विजानीयाम्, त्वम्, आदौ, प्रोक्तवान् इति॥ ४॥
भवत: = आपका, जन्म = जन्म (तो), अपरम् = अर्वाचीन अभी हालका है (और), विवस्वत: = सूर्यका, जन्म = जन्म, परम् = बहुत पुराना है अर्थात् कल्पके आदिमें हो चुका था (तब मैं), इति = इस बातको, कथम् = कैसे, विजानीयाम् = समझूँ (कि), त्वम् = आपहीने, आदौ = कल्पके आदिमें (सूर्यसे), एतत् = यह योग, प्रोक्तवान् = कहा था।
‘अर्जुन ने कहा’ : ‘आपका जन्म बाद में हुआ, और विवस्वत का पहले; तब मैं कैसे समझूँ कि आपने इसके बारे में पहले कभी कहा था?’
व्याख्या—‘अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत:’— आपका जन्म तो अभी कुछ वर्ष पूर्व श्रीवसुदेवजीके घर हुआ है, पर सूर्यका जन्म सृष्टिके आरम्भमें हुआ था। अत: आपने सूर्यको कर्मयोग कैसे कहा था?
अर्जुनके इस प्रश्नमें तर्क या आक्षेप नहीं है, प्रत्युत जिज्ञासा है। वे भगवान् के जन्म-सम्बन्धी रहस्यको सुगमतापूर्वक समझनेकी दृष्टिसे ही प्रश्न करते हैं; क्योंकि अपने जन्म-सम्बन्धी रहस्यको प्रकट करनेमें भगवान् ही सर्वथा समर्थ हैं।
‘कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति’—मैं आपको सृष्टिके आदिमें उपदेश देनेवाला कैसे जानूँ? अर्जुनके प्रश्नका तात्पर्य यह है कि सूर्यको उपदेश देनेके बादसे सूर्यवंशकी (मनु, इक्ष्वाकु आदि) कई पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं और आपका अवतार अभीका है; अत: आपने सृष्टिके आदिमें सूर्यको उपदेश कैसे दिया था—यह बात मैं अच्छी तरह समझना चाहता हूँ। सूर्य तो अभी भी है, इसलिये उसे अभी भी उपदेश दिया जा सकता है। परन्तु आपने सूर्यको उपदेश देनेके बाद सूर्यवंशकी परम्पराका भी वर्णन किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि आपने सूर्यको उपदेश अभी नहीं दिया है। अत: आपने सूर्यको कल्पके आदिमें कैसे उपदेश दिया था?
सम्बन्ध—अर्जुनके प्रश्नके उत्तरमें अपना अवतार-रहस्य प्रकट करनेके लिये भगवान् पहले अपनी सर्वज्ञताका दिग्दर्शन कराते हैं।