एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥43॥
एवम्, बुद्धे:, परम्, बुद्ध्वा, संस्तभ्य, आत्मानम्, आत्मना,
जहि, शत्रुम्, महाबाहो, कामरूपम्, दुरासदम्॥ ४३॥
एवम् = इस प्रकार, बुद्धे: = बुद्धिसे, परम् = पर अर्थात् सूक्ष्म बलवान् और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्माको, बुद्ध्वा = जानकर (और), आत्मना = बुद्धिके द्वारा, आत्मानम् = मनको, संस्तभ्य = वशमें करके, महाबाहो = हे महाबाहो! (तू इस), कामरूपम् = कामरूप, दुरासदम् = दुर्जय, शत्रुम् = शत्रुको, जहि = मार डाल।
‘इस प्रकार सत्य को जान कर जो कि बुद्धि से परे है, तथा स्व को ‘स्व’ से प्रतिबन्धित करते हुए, हे शक्तिशाली भुजावाले, उस कठिनाई से पकड़े जानेवाले शत्रु का नाश कर दो जो काम रूप में या अनियंत्रित ऐन्द्रिय वासना के रूप में है।’
(Commentary in the previous verse)