व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥2॥
व्यामिश्रेण, इव, वाक्येन, बुद्धिम्, मोहयसि, इव, मे
तत्, एकम्, वद, निश्चित्य, येन, श्रेय:, अहम्, आप्नुयाम्॥ २॥
व्यामिश्रेण इव = मिले हुए-से, वाक्येन = वचनोंसे, मे = मेरी, बुद्धिम् = बुद्धिको, मोहयसि इव = मानो मोहित कर रहे हैं (इसलिये), तत् = उस, एकम् = एक बातको, निश्चित्य = निश्चित करके, वद = कहिये, येन = जिससे, अहम् = मैं, श्रेय: = कल्याणको, आप्नुयाम् = प्राप्त हो जाऊँ।
‘इन परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले शब्दों से, आप मेरी समझ को भ्रमित कर रहे हैं; मुझे वह एक बात निश्चयपूर्वक बताइये, जिससे कि मैं उच्चतम को प्राप्त कर सकूँ’।
(commentary in the previous verse)