न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् ।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥26॥
न, बुद्धिभेदम्, जनयेत्, अज्ञानाम्, कर्मसङ्गिनाम्,
जोषयेत्, सर्वकर्माणि, विद्वान्, युक्त:, समाचरन्॥ २६॥
युक्त: = परमात्माके स्वरूपमें अटल स्थित हुए, विद्वान् = ज्ञानी पुरुषको (चाहिये कि वह), कर्मसङ्गिनाम् = शास्त्रविहितकर्मों में आसक्तिवाले, अज्ञानाम् = अज्ञानियोंकी, बुद्धिभेदम् = बुद्धिमें भ्रम अर्थात् कर्मोंमें अश्रद्धा, न जनयेत् = उत्पन्न न करे(किंतु स्वयम्), सर्वकर्माणि = शास्त्रविहित, समस्त कर्म, समाचरन् = भलीभाँति करता हुआ (उनसे भी वैसे ही), जोषयेत् = करवावे।
‘किसी को कर्म में आसक्त्त अज्ञानी लोगों की बुद्धि को विचलित नहीं करना चाहिये; प्रबुद्ध व्यक्ति, जो स्वयं योग के भाव से कर्म में युक्त है; उसे चाहिये कि वह अज्ञानी को भी सभी कर्मों में लगाये रखे’।
(Commentary in previous verse)