न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥ २-६॥
न, च, एतत्, विद्म:, कतरत्, न:, गरीय:,
यत्, वा, जयेम, यदि, वा, न:, जयेयु:,
यान्, एव, हत्वा, न, जिजीविषाम:,
ते, अवस्थिता:, प्रमुखे, धार्तराष्ट्रा:॥ ६॥
एतत् = यह, च = भी, न = नहीं, विद्म: = जानते (कि), न: = हमारे लिये (युद्ध करना और न करना इन), कतरत् = दोनोंमेंसे कौन-सा, गरीय: = श्रेष्ठ है, यत् वा = अथवा (यह भी नहीं जानते कि), जयेम = उन्हें हम जीतेंगे, यदि वा = या, न: = हमको (वे), जयेयु: = जीतेंगे (और), यान् = जिनको, हत्वा = मारकर (हम), न जिजीविषाम: = जीना भी नहीं चाहते, ते = वे, एव = ही (हमारे आत्मीय), धार्तराष्ट्रा: = धृतराष्ट्रके पुत्र, प्रमुखे = हमारे सामने मुकाबलेमें, अवस्थिता: = खड़े हैं।
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना—इन दोनोंमेंसे कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्रके पुत्र हमारे मुकाबलेमें खड़े हैं।
व्याख्या—‘न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीय:’—मैं युद्ध करूँ अथवा न करूँ—इन दोनों बातोंका निर्णय मैं नहीं कर पा रहा हूँ। कारण कि आपकी दृष्टिमें तो युद्ध करना ही श्रेष्ठ है, पर मेरी दृष्टिमें गुरुजनोंको मारना पाप होनेके कारण युद्ध न करना ही श्रेष्ठ है। इन दोनों पक्षोंको सामने रखनेपर मेरे लिये कौन-सा पक्ष अत्यन्त श्रेष्ठ है—यह मैं नहीं जान पा रहा हूँ। इस प्रकार उपर्युक्त पदोंमें अर्जुनके भीतर भगवान् का पक्ष और अपना पक्ष दोनों समकक्ष हो गये हैं।
‘यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:’—अगर आपकी आज्ञाके अनुसार युद्ध भी किया जाय, तो हम उनको जीतेंगे अथवा वे (दुर्योधनादि) हमारेको जीतेंगे—इसका भी हमें पता नहीं है।
यहाँ अर्जुनको अपने बलपर अविश्वास नहीं है, प्रत्युत भविष्यपर अविश्वास है; क्योंकि भविष्यमें क्या होनहार है—इसका किसीको क्या पता?
‘यानेव हत्वा न जिजीविषाम:’—हम तो कुटुम्बियोंको मारकर जीनेकी भी इच्छा नहीं रखते; भोग भोगनेकी, राज्य प्राप्त करके हुक्म चलानेकी बात तो बहुत दूर रही! कारण कि अगर हमारे कुटुम्बी मारे जायँगे, तो हम जीकर क्या करेंगे? अपने हाथोंसे कुटुम्बको नष्ट करके बैठे-बैठे चिन्ता-शोक ही तो करेंगे! चिन्ता-शोक करने और वियोगका दु:ख भोगनेके लिये हम जीना नहीं चाहते।
‘तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा:’—हम जिनको मारकर जीना भी नहीं चाहते, वे ही धृतराष्ट्रके सम्बन्धी हमारे सामने खड़े हैं। धृतराष्ट्रके सभी सम्बन्धी हमारे कुटुम्बी ही तो हैं। उन कुटुम्बियोंको मारकर हमारे जीनेको धिक्कार है!
सम्बन्ध—अपने कर्तव्यका निर्णय करनेमें अपनेको असमर्थ पाकर अब अर्जुन व्याकुलतापूर्वक भगवान् से प्रार्थना करते हैं।