आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठंसमुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वेस शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥70॥ आपूर्यमाणम्, अचलप्रतिष्ठम्, समुद्रम्, आप:, प्रविशन्ति, यद्वत्,तद्वत्, कामा:, यम्, …
BG 3.6 कर्मेन्द्रियाणि संयम्य
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥6॥ कर्मेन्द्रियाणि, संयम्य, य:, आस्ते, मनसा, स्मरन्,इन्द्रियार्थान्, विमूढात्मा, मिथ्याचार:, स:, उच्यते॥ …
BG 2.55 प्रजहाति यदा कामान्
श्रीभगवानुवाच ।प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥55॥ प्रजहाति, यदा, कामान्, सर्वान्, पार्थ, मनोगतान्,आत्मनि, एव, आत्मना, तुष्ट:, …
Bhagavad Gita Chapter 5 Overview
मनुष्यको अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियोंके आनेपर सुखी-दुःखी, राजी नाराज नहीं होना चाहिये; क्योंकि इन सुख-दुःख आदि द्वन्द्वोंमें फँसा हुआ मनुष्य संसारसे ऊँचा नहीं उठ सकता। स्त्री, पुत्र, परिवार, …
Bhagavad Gita Chapter 4 Overview
सम्पूर्ण कर्मोंको लीन करनेके, सम्पूर्ण कर्मोंके बन्धनसे रहित होनेके दो उपाय हैं- कर्मोंक तत्त्वको जानना और तत्त्वज्ञानको प्राप्त करना। भगवान् सृष्टिकी रचना तो करते हैं, पर उस कर्ममें और उसके फलमें …
BG 2.8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥ २-८॥ न, हि, प्रपश्यामि, मम, अपनुद्यात्, यत्, शोकम्, उच्छोषणम्, इन्द्रियाणाम्, …
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