Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.70।। व्याख्या -- अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः -- तुम्हारा और हमारा यह संवाद शास्त्रों? सिद्धान्तोंके साररूप धर्मसे …
Bhagavad Gita 18.69
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.69।। व्याख्या -- न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः -- जो अपनेमें लौकिकपारलौकिक प्राकृत पदार्थोंकी महत्ता? लिप्सा? …
Bhagavad Gita 18.68
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.68।। व्याख्या -- भक्तिं मयि परां कृत्वा -- जो मेरेमें पराभक्ति करके इस गीताको कहता है। इसका तात्पर्य है कि जो रुपये? मानबड़ाई? …
Bhagavad Gita 18.67
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.67।। व्याख्या -- इदं ते नातपस्काय -- पूर्वश्लोकमें आये सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज -- इस सर्वगुह्यतम वचनके …
Bhagavad Gita 18.66
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.66।। व्याख्या -- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज -- भगवान् कहते हैं कि सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय? धर्मके निर्णयका विचार …
Bhagavad Gita 5.13 – Sarvakarmāṇi Manasā
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी ।नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥13॥ sarvakarmāṇi manasā saṃnyasyāste sukhaṃ vaśīnavadvāre pure dehī naiva kurvanna kārayan sarva = …
Continue Reading about Bhagavad Gita 5.13 – Sarvakarmāṇi Manasā →