Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.47।। व्याख्या -- श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् -- यहाँ स्वधर्म शब्दसे वर्णधर्म ही मुख्यतासे लिया गया …
Bhagavad Gita 8.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.17।। व्याख्या--सहस्रयुगपर्यन्तम् ৷৷. तेऽहोरात्रविदो जनाः --सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि--मृत्युलोकके इन चार युगोंको एक चतुर्युगी कहते हैं। ऐसी एक हजार …
Bhagavad Gita 18.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.46।। व्याख्या -- यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् -- जिस परमात्मासे संसार पैदा हुआ है? जिससे सम्पूर्ण संसारका संचालन …
Bhagavad Gita 18.45
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.45।। व्याख्या -- स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः -- गीताके अध्ययनसे ऐसा मालूम होता है कि मनुष्यकी जैसी स्वतःसिद्ध …
Bhagavad Gita 18.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.44।। व्याख्या -- कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् -- खेती करना? गायोंकी रक्षा करना? उनकी वंशवृद्धि करना और शुद्ध व्यापार …
Bhagavad Gita 5.2 – Saṃnyāsaḥ Karmayogaśca
श्रीभगवानुवाच ।संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ śrībhagavānuvācasaṃnyāsaḥ karmayogaśca niḥśreyasakarāvubhautayostu karmasaṃnyāsātkarmayogo …
Continue Reading about Bhagavad Gita 5.2 – Saṃnyāsaḥ Karmayogaśca →