नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥8॥प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥9॥ न, …
BG 5.18 विद्याविनयसम्पन्ने
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥18॥ विद्याविनयसम्पन्ने, ब्राह्मणे, गवि, हस्तिनि,शुनि, च, एव, श्वपाके, च, पण्डिता:, समदर्शिन:॥ …
Bhagavad Gita 18.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.8।। व्याख्या -- दुःखमित्येव यत्कर्म -- यज्ञ? दान आदि शास्त्रीय नियत कर्मोंको करनेमें केवल दुःख ही भोगना पड़ता है? और उनमें है ही …
Bhagavad Gita 18.7
स्वधर्मानुसार अधिकारप्राप्त शास्त्रविहित कर्म ही नियत कर्म है, अतः नित्य कर्म अवश्य कर्तव्य है। आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में लिखा है – जो मनुष्य मुमुक्षु होने पर भी अनात्मज्ञ है वही व्यक्ति नित्यकर्म …
Bhagavad Gita 18.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.6।। व्याख्या -- एतान्यपि तु कर्माणि ৷৷. निश्चितं मतमुत्तमम् -- यहाँ एतानि पदसे पूर्वश्लोकमें कहे यज्ञ? दान और तपरूप …
Bhagavad Gita 18.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.5।। व्याख्या -- यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् -- यहाँ भगवान्ने दूसरोंके मत (18। 3) को ठीक बताया है। भगवान् कठोर …