Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.15।। व्याख्या -- शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म ৷৷. पञ्चैते तस्य हेतवः -- पीछेके (चौदहवें) श्लोकमें कर्मोंके होनेमें जो अधिष्ठान आदि …
Bhagavad Gita 18.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.14।। व्याख्या -- अधिष्ठानम् -- शरीर और जिस देशमें यह शरीर स्थित है? वह देश -- ये दोनों अधिष्ठान हैं।कर्ता -- सम्पूर्ण …
Bhagavad Gita 18.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.13।। व्याख्या -- पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि -- हे महाबाहो जिसमें सम्पूर्ण कर्मोंका अन्त हो जाता है? ऐसे सांख्यसिद्धान्तमें …
Bhagavad Gita 18.12
श्रीरामकृष्ण की वाणी इन गहन विषयों के समझने में सहायता देगी। उन्होंने सहज बातों में कहा है – “जीवन का उद्देश्य है ईश्वरलाभ। कर्म तो आदिकांड है, वह जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता। तो भी निष्काम कर्म एक …
Bhagavad Gita 18.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.11।। व्याख्या -- न हि देहभृता (टिप्पणी प0 879.1) शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः -- देहधारी अर्थात् देहके साथ तादात्म्य …
Bhagavad Gita 18.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.10।। व्याख्या -- न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म -- जो शास्त्रविहित शुभकर्म फलकी कामनासे किये जाते हैं और परिणाममें जिनसे पुनर्जन्म होता …