श्रीरामकृष्णदेव की वाणी हैं – ईश्वर के साथ किसी तरह संयुक्त होकर रहना। दो मार्ग हैं – कर्मयोग और मनोयोग। जो लोग आश्रम में हैं, कर्म के द्वारा उनका संयोग है। ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ, और …
Bhagavad Gita 18.47
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.47।। व्याख्या -- श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् -- यहाँ स्वधर्म शब्दसे वर्णधर्म ही मुख्यतासे लिया गया …
Bhagavad Gita 18.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.46।। व्याख्या -- यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् -- जिस परमात्मासे संसार पैदा हुआ है? जिससे सम्पूर्ण संसारका संचालन …
Bhagavad Gita 18.45
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.45।। व्याख्या -- स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः -- गीताके अध्ययनसे ऐसा मालूम होता है कि मनुष्यकी जैसी स्वतःसिद्ध …
Bhagavad Gita 18.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.44।। व्याख्या -- कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् -- खेती करना? गायोंकी रक्षा करना? उनकी वंशवृद्धि करना और शुद्ध व्यापार …
Bhagavad Gita 5.2 – Saṃnyāsaḥ Karmayogaśca
श्रीभगवानुवाच ।संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ śrībhagavānuvācasaṃnyāsaḥ karmayogaśca niḥśreyasakarāvubhautayostu karmasaṃnyāsātkarmayogo …
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