Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.60।। व्याख्या -- स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा -- पूर्वजन्ममें जैसे कर्म और गुणोंकी वृत्तियाँ रही हैं? इस जन्ममें जैसे …
Bhagavad Gita 18.59
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.59।। व्याख्या -- यदहंकारमाश्रित्य -- प्रकृतिसे ही महत्तत्त्व और महत्तत्त्वसे अहंकार पैदा हुआ है। उस अहंकारका ही एक विकृत अंश है …
Bhagavad Gita 18.58
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.58।। व्याख्या -- मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि -- भगवान् कहते हैं कि मेरेमें चित्तवाला होनेसे तू मेरी कृपासे …
Bhagavad Gita 18.57
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.57।। व्याख्या -- [इस श्लोकमें भगवान्ने चार बातें बतायी हैं --,(1) चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य -- सम्पूर्ण कर्मोंको चित्तसे मेरे …
Bhagavad Gita 18.56
शरणागति सर्वश्रेष्ठ योग है। शरणागत भक्त की श्रीभगवान सभी अवस्थाओं में रक्षा करते हैं और वही उनके ‘योग क्षेम’ का वहन भी करते हैं। श्रीरामकृष्णदेव ने इस ‘शरणागति’ पर विशेष जोर दिया है। जो भक्त हैं, उनके …
Bhagavad Gita 18.55
श्रीरामकृष्णदेव ने कहा है – ‘पूर्णज्ञान और पूर्णभक्ति एक ही है। परा भक्ति के द्वारा जो अवस्था प्राप्त होती है पूर्ण ज्ञान से भी उसी अवस्था का लाभ होता है।’ उन्होंने और भी कहा है – ‘तत्त्वज्ञान का अर्थ …