श्रीरामकृष्णदेव ने कहा है – “सत्य बात कलियुग की तपस्या है।” वाचिक सत्य के ऊपर वह बहुत जोर देते थे। उपनिषद के ऋषि कहते हैं – “सत्येन लभ्यः तपसा ह्येष आत्मा, सम्यग् ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम्।” …
Bhagavad Gita 4.13 – Cāturvarṇyaṃ Mayā
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥13॥ cāturvarṇyaṃ mayā sṛṣṭaṃ guṇakarmavibhāgaśaḥtasya kartāramapi māṃ …
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Bhagavad Gita 17.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.14।। व्याख्या -- देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम् -- यहाँ देव शब्द मुख्यरूपसे विष्णु? शङ्कर? गणेश? शक्ति और सूर्य -- इन पाँच …
Bhagavad Gita 17.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.13।। व्याख्या -- विधिहीनम् -- अलगअलग यज्ञोंकी अलगअलग विधियाँ होती हैं और उसके अनुसार यज्ञकुण्ड? स्रुवा आदि पात्र? बैठनेकी दिशा? …
Bhagavad Gita 17.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.12।। व्याख्या -- अभिसन्धाय तु फलम् -- फल अर्थात् इष्टकी प्राप्ति और अनिष्टकी निवृत्तिकी कामना रखकर जो यज्ञ किया जाता है? वह राजस …
Bhagavad Gita 17.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.10।। व्याख्या -- यातयामम् -- पकनेके लिये जिनको पूरा समय प्राप्त नहीं हुआ है? ऐसे अधपके या उचित समयसे ज्यादा पके हुए अथवा जिनका …