अब तक हम राजयोग के अन्तरंग साधनों को छोड़ शेष सभी अंगो के संक्षिप्त विवरण समाप्त कर चुके हैं। इन अन्तरंग साधनों का लक्ष्य एकाग्रता की प्राप्ति है। इस एकाग्रता-शक्ति को प्राप्त करना ही राजयोग का चरम …
प्रत्याहार और धारणा – स्वामी विवेकानन्द
प्राणायाम के बाद प्रत्याहार की साधना करनी पड़ती है। प्रत्याहार क्या है? तुम सभी को ज्ञात है कि विषयानुभूति किस तरह होती है। सब से पहले, इन्द्रियों के द्वारस्वरूप ये बाहर के यन्त्र हैं। फिर हैं …
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आध्यात्मिक प्राण का संयम – स्वामी विवेकानन्द
अब हम प्राणायाम की विभिन्न क्रियाओं के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे। हमने पहले ही देखा है कि योगियों के मत में साधना का पहला अंग फेफड़े की गति को अपने अधीन करना है। हमारा उद्देश्य है - शरीर के भीतर जो …
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प्राण का आध्यात्मिक रूप – स्वामी विवेकानन्द
योगियों के मतानुसार मेरुदण्ड के भीतर इड़ा और पिंगला नाम के दो स्नायविक शक्तिप्रवाह और मेरुदण्डस्थ मज्जा के बीच सुषुम्ना नाम की एक शून्य नली है। इस शून्य नली के सब से नीचे कुण्डलिनी का आधारभूत पद्म …
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प्राण – स्वामी विवेकानन्द
बहुतों का विचार है, प्राणायाम श्वास-प्रश्वास की कोई क्रिया है। पर असल में ऐसा नहीं है। वास्तव में तो श्वास-प्रश्वास की क्रिया के साथ इसका बहुत थोड़ा सम्बन्ध है। श्वास-प्रश्वास उन क्रियाओं में से सिर्फ …
साधना के प्राथमिक सोपान – स्वामी विवेकानन्द
राजयोग आठ अंगो में विभक्त है। पहला है यम - अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी का अभाव), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। दूसरा है नियम अर्थात् शौच, सन्तोष, तपस्या, स्वाध्याय (अध्यात्म-शास्त्रपाठ) और …
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