अब हम इष्टनिष्ठा के सम्बन्ध में विचार करेंगे। जो भक्त होना चाहता है, उसे यह जान लेना चाहिए कि ‘जितने मत हैं, उतने ही पथ।’ उसे यह अवश्य जान लेना चाहिए कि विभिन्न धर्मों के भिन्न भिन्न सम्प्रदाय उसी …
प्रतीक तथा प्रतिमा-उपासना | स्वामी विवेकानन्द
अब हम प्रतीकोपासना तथा प्रतिमा-पूजन का विवेचन करेंगे। प्रतीक का अर्थ है वे वस्तुएँ, जो थोड़े-बहुत अंश में ब्रह्म के स्थान में उपास्यरूप से ली जा सकती हैं। प्रतीक द्वारा ईश्वरोपासना का क्या अर्थ है? इस …
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मन्त्र – स्वामी विवेकानन्द
इन अवतारी महापुरुषों के वर्णन के बाद अब हम सिद्ध गुरुओं की चर्चा करेंगे। उन्हें मन्त्र द्वारा शिष्य में आध्यात्मिक ज्ञान का बीजारोपण करना पड़ता है। ये मन्त्र क्या है? भारतीय दर्शन के अनुसार नाम और रूप …
अवतार – स्वामी विवेकानन्द
जहाँ कहीं प्रभु का गुणगान होता हो, वही स्थान पवित्र है। तो फिर जो मनुष्य प्रभु का गुणगान करता है, वह और भी कितना पवित्र न होगा! अतएव जिनसे हमें आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त होती है, उनके समीप हमें कितनी …
गुरु और शिष्य के लक्षण – स्वामी विवेकानन्द
तो फिर गुरु की पहचान क्या है? सूर्य को प्रकाश में लाने के लिए मशाल की आवश्यकता नहीं होती। उसे देखने के लिए हमें दिया नहीं जलाना पड़ता। जब सूर्योदय होता है तो हम अपने आप जान जाते हैं कि सूरज उग आया। …
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गुरु की आवश्यकता – स्वामी विवेकानन्द
प्रत्येक जीवात्मा का पूर्णत्व प्राप्त कर लेना बिल्कुल निश्चित है और अन्त में सभी इस पूर्णावस्था की प्राप्ति कर लेंगे। हम वर्तमान जीवन में जो कुछ है, वह हमारे पूर्व जीवन के कर्मों और विचारों का फल है, …
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