अब हम विभूतिपाद में आते हैं। देशबन्धश्चित्तस्य धारणा॥१॥ सूत्रार्थ - चित्त को किसी विशेष वस्तु में धारण करके रखने का नाम है धारणा। व्याख्या - जब मन शरीर के भीतर या उसके बाहर किसी वस्तु के …
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